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गिरिजा शिक्षा समिति के अंतर्गत प्रबंधक ने अपने सोचे सपने को पूरा कर माता व पिता की मूर्ति स्थापना कर कीर्तमान किया हासिल-जाने कौन थी वो शख्सियत जिनकी मूर्ति उनके पुत्र ने किया स्थापित

अम्बेडकरनगर जनपद के टांडा तहसील क्षेत्र अंतर्गत नैपुरा जल निगम के निकट संचालित गिरिजा लघु माध्यमिक विद्यालय जो सन् 1980 से संचालित होते चला आ रहा हैं। उस विद्यालय के प्रबंधक ने अपने माता जी से किया वादा 45 वर्ष के दौरान काफी संघर्षों के बाद पूरा कर माता व पिता की मूर्ति स्थापित कर कीर्तमान हासिल किया।

अवध की शान – आपकी अपनी पहचान

अर्पित सिंह श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार एवं मुख्य सम्पादक

अम्बेडकरनगर जनपद के टांडा तहसील क्षेत्र अंतर्गत नैपुरा जल निगम के निकट संचालित गिरिजा लघु माध्यमिक विद्यालय जो सन् 1980 से संचालित होते चला आ रहा हैं। उस विद्यालय के प्रबंधक ने अपने माता जी से किया वादा 45 वर्ष के दौरान काफी संघर्षों के बाद पूरा कर माता व पिता की मूर्ति स्थापित कर कीर्तमान हासिल किया।

जो सबके लिए प्रेरणा का श्रोत बनना लाजमी हो गया गौरतलब हैं कि दिनांक 12 मार्च को स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव सेवानिवृत नजूल विभाग टांडा नगर पालिका परिषद के वरिष्ठ लिपिक व माता जी के यादों में हर साल के भांति इस साल भी अखंड रामायण का पाठ का आयोजन किया।

और इसके बाद 13 मार्च सन् 2025 दिन गुरुवार को हवन पूजन कर डाक्टर नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव ने अपने माता व पिता स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव व स्वर्गीय गिरिजा देवी श्रीवास्तव के मूर्ति की स्थापना भव्य कार्यक्रम आयोजित कर किया।

उक्त कार्यक्रम में जनपद के तमाम नेताओं व गिरिजा शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव के परिवार के लोगों के साथ शहर के तमाम गणमान्य लोगों की उपस्थिति दर्ज हुई।

अब आप जाने वह कौन सी शख्सियत थी जिनकी मूर्ति उनके पुत्र ने किया स्थापित…..

आप को उस शख्सियत के जीवन से परिचय कराते हुए बड़ा हर्ष हो रहा हैं, जिन्होंने कभी अपने बारे में न सोचा समाज के उत्थान के बारे में सोचा और अपनी जीवन लीला समाप्ति के दौरान भी अपने आठ पुत्र पांच पुत्रियों को सिर्फ और सिर्फ एक शिक्षा दिया कि हमेशा इंसाफ और ईमानदारी के रस्ते से गुजरना जीवन अवश्य सफल होगा।

मैं उनकी स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव की बात कर रहा हूं जो अंग्रेजों के शासन काल से नगर पालिका परिषद टांडा में नजूल अनुभाग में एक छोटी से नौकरी वरिष्ठ लिपिक के रूप में करते थे। हालांकि उनकी इस नौकरी को हम छोटी नहीं कह सकते क्यों कि उनके अंदर जो योग्यता थी वो नगर पालिका परिषद टांडा में उस जमाने में किसी के अंदर नहीं हुआ करती थी आप को बता दे कि नगर पालिका टांडा के उस जमाने में चाहे अधिशाषी अधिकारी की तैनाती होती रही हो या चेयरमैन की उनके बिना किसी का कार्य निष्पादित नहीं हुआ करता था।

ज्ञात हो कि अंग्रेज शासन काल के बाद हयात मोहम्मद चेयरमैन हुआ करते थे और उनको भी बाबू स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव के बिना अपना कार्य निष्पादन करने में कठिनाइयां झेलनी पड़ती थीं और वह भी उस जमाने में अपने आवास मच्छरिया पुल हवेली से रिक्शे से निकल बाबू स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव को लेकर ही कार्यालय जाते थे।

हालांकि उनके अंदर कोई खास उपलब्धि नहीं थी लेकिन उनको उर्दू भाषाओं और फ़ारसी भाषा का अनोखा ज्ञान हुआ करता था किंतु उनके जीवन के परिचय से अगर आप को अवगत कराया जाए तो उनके पास समाज का अगर कोई व्यक्ति अपनी समस्या लेकर पहुंचता था तो उसके जमीन और घर का सिर्फ वह शख्सियत पता पूछता था और उनके जांगले व दरवाजे तथा चौहद्दी बिना नक्शा देखे उनको बताने और उनके कार्यों को तत्काल निष्पादित करने के लिए अपने संबंधित चेयरमैन और नगर पालिका के अधिकारियों से कराने में उनके द्वारा चूक नहीं होती थी।

कारण यही रहा कि उनकी लोकप्रियता आज भी तमाम बुजुर्गो में बनी हुई हैं, यह कई दशक की बात है, लेकिन अब अगर उनके पुत्रों के जीवन परिचय की बात करें तो उनके आठ पुत्र और पांच पुत्रियां हैं, जिन्हें उन्होंने जन्म दिया और उनके आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र नरेंद्र सिंह श्रीवास्तव वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सेवानिवृत LIC कार्यालय टांडा में आखरी कार्यकालय पूरा कर आज 86 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ बने हुए हैं।

उसके बाद उनके दुर्तीय नंबर के पुत्र सुरेन्द्र सिंह श्रीवास्तव जो भंडारागार निगम में रीजनल मैनेजर रहते हुए सेवानिवृत हुए और उन्होंने अपना आवास लखनऊ में इंद्रानगर के शिवा जी पुरम में बनवा लिया वह वहां के निवासी हो गए।

इसी प्रकार उनके तीसरे पुत्र महेंद्र सिंह श्रीवास्तव वह भी भंडारागार निगम में रीजनल मैनेजर के पद पर तैनात रहते हुए सेवानिवृत हुए उन्होंने भी अपना आवास लखनऊ में टेढ़ीपुलिया के पास निकट गायत्री मंदिर की तरफ बनवा लिया और वह भी वही के वासी हो गए।

अब बात आती हैं, चौथे पुत्र की छोटी सी नौकरी बाबू स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव जी की उन्होंने उनको इस संकट की घड़ी में जब उनको लगभग वेतन 65 रुपए मिलता था तो इतने बड़े परिवार की जिम्मेवारी निभाते उन्होंने उनको पॉलिटेक्निक की डिग्री दिलवाई उन्होंने भी अपने पिता के प्रेरणा से नौकरी हासिल की और उनको नौकरी भी मिली तो पी डब्लू डी में जेईई के पद पर उन्होंने भी नौकरी हथियाने के बाद ईमानदारी के साथ कार्य किया अपने पिता के सिखाए रस्ते पर चल रहा ईमानदारी से नौकरी की पदोन्नति मिलती गई।

और सेक्शन इंजियर के पद पर रहते हुए सेवानिवृत हुए पांचवे पुत्र उपेंद्र सिंह श्रीवास्तव जो काफी संघर्षों से अपने जीवन को जीते हुए भाइयों के सपोर्ट के अनुसार अपने जीवन को पार किए आज उनके बच्चे इंजियर और एक बड़ा बेटा भंडारागार निगम में टेक्निकल डिपार्टमेंट में तैनात है।

अब छठे चरण के पुत्र की जीवन परिचय से अगर अवगत कराया जाए तो नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार रहते हुए उन्होंने कभी नौकरी करने की अभिलाषा नहीं की उनके अंदर अपने पिता के द्वारा दिए गए अनुसरण के अनुसार उन्होंने समाज सेवा की भावना उनकी माता जी के द्वारा भी जगी तो उन्होंने सन् 1980 में चिट फंड सोसाइटी के अंतर्गत रीड गंज फैजाबाद से अपने माता श्री गिरिजा देवी श्रीवास्तव के नाम से गिरिजा शिक्षा समिति का रजिस्ट्रेशन पत्र संख्या 1191/1980-81 में कराया और अपने पिता से एक छोटा सा एक कित्ता भूमि विद्यालय अपने माता श्री गिरिजा देवी लघु माध्यमिक विद्यालय के नाम से संचालित करने के लिए मांग किया।

इस पर ईमानदार एवं स्वाभिमानी पिता ने देने से इनकार किया तो उनकी माता श्री जो आठ पुत्र और पांच पुत्रियों को जन्म दे कर अच्छे संस्कार देते हुए पालन पोषण की उन्होंने अपने पुत्र नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव के लिए उस समय में अपने पति देव से दबाव बना कर उनको उनकी इच्छा की पूर्ति करने के उद्देश्य विद्यालय चलाने के लिए भूमि उपलब्ध कराई और उसके बाद उनके छठवें पुत्र डॉ नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव का कारवां शुरू हुआ जो संघर्षों में तब्दील होता गया।

इस दौरान तमाम ऐसे उतार-चढ़ाव आए जब उच्च अधिकारियों से उनके इच्छाओं की पूर्ति के लिए पैसों की मांग की गई चाहे वह विद्यालय की मान्यता हो चाहे वह विद्यालय संचालन के दौरान अवैध रुपए की मांग हो उन्होंने अपने पिता के प्रेरणा स्रोत उद्देश्यों और अनुशरणों के अनुसार निपटने से लेकर डपटने का कार्य करते हुए तमाम संघर्षों को पार करके विद्यालय का नाम रोशन करते हुए संचालन किया।

इस दौरान एक विकट संकट आया जब गिरजा लघु माध्यमिक विद्यालय सन 2005 में अनुदानित होने के लिए प्रत्यावेदन मांगा गया तब उन्होंने शासन स्तर पर अपनी पुरजोर कोशिश करते हुए पूरी ताकत लगा दी और अपने विद्यालय को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अनुदानित करने में सफलता हासिल की इस दौरान उनके माता श्री का अपार आशीर्वाद उनके साथ चलता गया।

और उन्होंने इस सफलता को हासिल करते हुए भी अपने अंदर घमंड और गुरूर आने का कार्य नहीं होने दिया जबकि उनकी लोकप्रियता सभी सरकारी नौकरी करते हुए भाइयों से गजब की रही और अगर उनकी गहराइयों में जाकर बताया जाए तो शब्द कुछ कम पड़ जाएंगे खैर अब मैं बात करता हूं सातवें नंबर पुत्र की सातवें नंबर पुत्र ज्ञानेंद्र सिंह श्रीवास्तव जो नौकरी में तो नहीं आ सके लेकिन उन्होंने व्यावसायिक रूप से भी कार्य करते हुए अपने पुत्रों को इंजीनियर बनाया और आज उनके पुत्र अच्छे खासे मुकाम पर नौकरी हासिल कर कार्य कर रहे हैं।

लेकिन सभी लखनऊ राज्य में रहकर एवं दिल्ली नोएडा तथा बेंगलुरु व अन्य प्रदेश में रहकर यहां बाबूजी का नाम रोशन नहीं कर पाए खैर इन सभी कार्यों का मौका किसी एक पुत्र को मिलता है जो सपना संजोया उस पुत्र ने अपने सपनों को पूरा कर कीर्तिमान हासिल किया।

अगर हम आठवें पुत्र की बात करें तो उनका नाम है जितेंद्र सिंह श्रीवास्तव उन्होंने एनटीपीसी में रहते हुए टाटा स्टील में स्टोर कीपर में रहते हुए उच्च स्तरीय पद पर रहकर नौकरी हासिल की और सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने भी लखनऊ में अपना घर बना लिया लेकिन आखरी में बचा।

एक पुत्र जो सदियों से अपने माता-पिता के नाम को जिस प्रकार उनके नाम समाज में थे उसको और ऊंचा पहुंचने के उद्देश्यों से कार्य करते हुए उनके लिए दिन रात मेहनत कर लग्न शीलता से अपने सपनों को पूरा करके उनकी मूर्ति स्थापना कर अपना सपना पूरा आखिरकार कर लिया।

आज इस भव्य कार्यक्रम के दौरान तमाम गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही जिसमें लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया की कद चाहे जितना ऊंचा हो लेकिन आपकी सोच अगर अपने माता-पिता के लिए ऊंची ना हो और उनके लिए आप कुछ ना कर पाए तो आपका कद ऊंचे होने से किसी का किरदार ऊंचा नहीं हो सकता। इस प्रेरणा के उद्देश्यों से गिरिजा शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ नृपेंद्र सिंह श्रीवास्तव ने अपने सपनों को पूरा करते हुए एक प्रेरणा देने का सभी को कार्य किया है।

अगर मैं पूरी दस्ता लिखूंगा तो मेरा कंटेंट बहुत लंबा हो जाएगा आप सभी बस एक बार किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बाबू स्वर्गीय श्री हरदेव सिंह श्रीवास्तव की कहानी सुन लीजिएगा तो खुद वाकिफ हो जाइयेगा।

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